क्या आर्य राष्ट्र में कभी न समृद्ध होगी कला और अभिव्यक्ति?
रहेगी सदैव स्तुतिगान की घुटन सत्य की परित्यक्ति?
देशभक्ति के नाम पर राष्ट्र का ही ह्रास, बाहरी,कभी अंदरूनी तानाशाही की अभिशप्ति?
No comments:
Post a Comment