Friday, August 22, 2014

कोयला

कहाँ से
बदलूँ
तेरी ज़िन्दगी,
कहाँ से
हस्तक्षेप करूँ!

गिड़गिड़ा मत
साफ़ साफ़ बता,

उठा अपनी
ज़िम्मेदारी
का
कोयला,
कहीं
लकीर तो
लगा।

No comments:

Post a Comment