तरक्की की
फ्लाइट चढ़ते,
जवानी के
एअरपोर्ट पर,
ज़िन्दगी
की
कतार से,
ऐसे
निकाला
तुमने मुझे
जैसे मैं
कोई
स्मगलर था,
खड़ा रखा
फिर
मुझे,
बरसों,
नियती के
इन्टैरोगेशन रूम में,
पूछे
वो वो
सवाल
जो मुझसे
वाबस्ता
न थे,
कहते हो
अब
कि
'जाओ
बेकसूर हो
तुम',
अब
ये तो कहो
किस कतार लगूँ,
कौन सी
है उड़ान
इंतज़ार में मेरे,
किस
बचे
आसमान में उड़ूँ !
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