Friday, October 9, 2015

सवेर

नवीं नकोर
सवेर
छड गई ए रात
मेरी खिड़कियाँ दे बाहर,

अंदर
पर
अजे वी नें
मेरे
न जाणे
किन्ने
अनबीते
कल!

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