Tuesday, August 5, 2014

बर्तन

वृक्ष
कहाँ
फल को
अपना
कहता है,
निहारता
है
उसे
पकते
अपनी
गोद में
बर्तन की
मानिंद,
मिट्टी जल वायु किरणों
को
उसे
बनाते
प्यार से
देखता है।

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