साँसों की तितलियाँ
Monday, August 4, 2014
क़ुबूल
कुबूल
कर
दोज़ख़
जो
तुझे
मिली है,
माँग कर
लिया है
उसने
तुम्हें,
बेख़ुदी
तुम्हारी
जन्नत सी
लगी है।
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