पेड़ की उतारी चमड़ी पर जब चलाता हूँ कलम का चाकू, दिल की बात लिखता हूँ,
गूँजती हैं कानों की गुफ़ाओं में उसकी चीखें लफ़्ज़ों की आवाज़ों से छुपाता हूँ।
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