Tuesday, August 12, 2014

डर

खड़ा हूँ
उस कल
की
छत पर
जिससे
बीता आज
डरता था,

ऊपर खड़ा
मुंडेर से
हिलाता हूँ
हाथ
ज़ोर ज़ोर से
नीचे खड़े
अतीत को,
बताने
कि कुछ नहीं है
ऊपर
जिससे
वो
डरता था।

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