खड़ा हूँ उस कल की छत पर जिससे बीता आज डरता था,
ऊपर खड़ा मुंडेर से हिलाता हूँ हाथ ज़ोर ज़ोर से नीचे खड़े अतीत को, बताने कि कुछ नहीं है ऊपर जिससे वो डरता था।
No comments:
Post a Comment