ज़हनी जंगल के माहौल ने डस लिया, हालात के साँपों में कहाँ इतना ज़हर था, चारों ओर से खुले थे मुक्ति के दरवाज़े, मैं ही कहीं अन्दर से बंद था।
No comments:
Post a Comment