पहाड़ की
उस वादी में
बनाऊँगा
एक दिन
लकड़ी का
अति सुन्दर घर
जिसकी
ऊपरी मंज़िल
सजाऊँगा
सिर्फ़
गद्दों
किताबों
ख़ामोशी से
करने
साधना...
ऐसी थी
इच्छा
बरसों से।
आज
बना है
तो
शेष हूँ
कम,
बस
लक्कड़हारा
और कारीगर
ही
सके ले जा
सुकून की
पोटलियाँ
अपनी अपनी
साथ अपने
अपनी कुटियाँ।
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