सामने बैठा मार पलाती मुस्तकबिल का मैं देखता सुनता सूँघता हूँ आज के ख़ुद को, सोचते विचारते विचरते भोलेपन में न जाने क्या क्या कहाँ कहाँ!
पीछे खड़ा कंधों के ऊपर से झाँकता है मेरा बीता मैं मुझे कुछ मायूसी कुछ सुकून कुछ कौतुहल से!
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