Sunday, October 12, 2014

आगे पीछे

सामने बैठा
मार पलाती
मुस्तकबिल का मैं
देखता
सुनता
सूँघता हूँ
आज के
ख़ुद को,
सोचते
विचारते
विचरते
भोलेपन में
न जाने
क्या क्या
कहाँ कहाँ!

पीछे खड़ा
कंधों
के ऊपर से
झाँकता है
मेरा बीता मैं
मुझे
कुछ मायूसी
कुछ सुकून
कुछ कौतुहल से!

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