Tuesday, October 21, 2014

अलमारी

देखा
नहीं था
किसी
अलमारी को
पैरों पर
चलते
सड़क पर
कभी,
आज
धनतेरस के दिन
पीछे से
ये भी
देख लिया,
एक पल को
लगा...

आगे पहुँच
बगल से
देखा,
तो टूटा भ्रम,

आज भी
किसी की
दिवाली को
किसी के घर
बिन पैरों की
अलमारी ढोता
वो
दो पैरों का
मज़दूर
निकला।

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