देखा
नहीं था
किसी
अलमारी को
पैरों पर
चलते
सड़क पर
कभी,
आज
धनतेरस के दिन
पीछे से
ये भी
देख लिया,
एक पल को
लगा...
आगे पहुँच
बगल से
देखा,
तो टूटा भ्रम,
आज भी
किसी की
दिवाली को
किसी के घर
बिन पैरों की
अलमारी ढोता
वो
दो पैरों का
मज़दूर
निकला।
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