चढ़ आया हूँ आधा आसमान, शहर तमाम को मगर आज मुझसे कोई सरोकार नहीं!
कल ढूँढेंगे लेकर चिराग भी पूजने को तो मिलूँगा आसानी से मैं भी नहीं।
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