Monday, October 20, 2014

बिजली

हीरे सी
चमकी हैं
भीगी
आँखें,

ज़रूर
खुला है
कहीं
सब्र का
बाँध,

यादों की
चलीं हैं
टरबाइनें,

संवेदना की
कहीं
बिजली
बनी है!

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