एक हफ़्ते से जिसे मिलता रहा ख़ुलूस से, दिल ओ हाथ मिलाता रहा, आज रुख़सत के दिन आई कार्ड देखा तो मुसलमान निकला,
काश पहने होता मैं भी अपनी पहचान, था मैं भी उसका खैरख्वाह हक़ीक़त में, उसे भी कोई शुबा न रहता।
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