Tuesday, December 30, 2014

आई कार्ड

एक हफ़्ते से
जिसे
मिलता रहा
ख़ुलूस से,
दिल ओ हाथ
मिलाता रहा,
आज
रुख़सत के दिन
आई कार्ड देखा
तो मुसलमान
निकला,

काश
पहने होता
मैं भी
अपनी पहचान,
था मैं भी
उसका
खैरख्वाह
हक़ीक़त में,
उसे भी कोई
शुबा न रहता।

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