Saturday, December 6, 2014

बस

एक बस
रुक गुज़री थी
उस स्टॉप से,
मैंने देखा,

सम्मोहित कर
निगल गई
दस बीस
सवारियाँ,

कहाँ
जाकर
उगले अब उन्हें,
सोच में हैं
रास्ते!

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