ताबूत सी पेटी में लेटे थे आम, बिछड़े बाग़ के,
पैग़ाम ए ज़मीं ज़ुबाँ ए खाक़ तक पहुँचाने, क़ुर्बान ओ फ़र्ज़ थे जाए मिट्टी के।
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