अनगिनत खिड़कियाँ थी भीतर जो खुलती थीं किस किस स्वर्ग में,
बस उसी को थीं मयस्सर जिसने उन तक का खोला वो दरवाज़ा जो था बन्द और माँगता था इच्छा की कोशिश का धक्का।
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