Sunday, May 29, 2016

खिड़कियाँ

अनगिनत
खिड़कियाँ थी
भीतर
जो खुलती थीं
किस किस
स्वर्ग में,

बस
उसी को थीं
मयस्सर
जिसने
उन तक का
खोला
वो दरवाज़ा
जो था बन्द
और माँगता था
इच्छा की कोशिश
का धक्का।

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