साँसों की तितलियाँ
Sunday, May 29, 2016
हर बार
न जाने
क्या मिटाती है
फिर
पत्थरों से
बदलती हवा,
उन्हें ही
क्यों मिली है
हर बार
वक़्त बदलनें की
सज़ा।
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