Friday, April 11, 2014

कहानी

आओ
बैठो
यहाँ
मेरे सामने
देखो ज़रा
मेरी तरफ़।

खोलूँ
काटूँ
तुम्हें
कलम की
धार से,
निकालूँ
अंदर से
तुम्हारे,
तुम्हारी
महकती
भीगी
नायाब
कहानी,
मेरी ज़ुबानी।

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