Friday, April 11, 2014

मिट्टी

आया है
ख़्याल
अभी,
हूँ
मुस्कुरा रहा
ये जान,

बना हूँ
मिट्टी से
उसी
जिससे
बने थे
क्या क्या
कौन कौन
कभी
पहले भी।

हूँ
रोमाँचित
सोच कर,
बनेगा
और
क्या क्या
कौन
कब
कहाँ,

कैसा
मटका,
कैसी
सुराही,

मिट्टी से
इसी,

घूमते
चाक पर
धरती के,

किस
कुम्हार
के हाथ,

भरने
कौन सी
हवा
कौन सा
पानी

बुझाने
किस किस की
कौन सी
प्यास,

किस दहलीज़
किस बोड़
किस उजाड़

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