यही
सोच
मैनें
उसे
भेंट में
नहीं दी
वो किताब,
शायद
खोज ले
उसका कौतुहल
उस किताब से
जुदा
कोई हल,
कोई रास्ता
नया।
रहा
मगर
वो उड़ता
भटकता
तितली की तरह,
अवचेतन,
उठाता
बिखेरता
पहुँचाता
इधर उधर
जीवन पराग,
रहते
स्वयं
तलाशता
फीका
शहद।
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