Monday, April 14, 2014

चार दीवारी

रूह,
मेरे बच्चे,
क्या
हिलाती हो
टाँगें
मना करने
पर भी
बैठे यूँ
गोल धरती के
पलंग पर!

उतरो
निकलो
चार दीवारी
से
ज़रा
बाहर,
कुछ
खेलो
कूदो,
घूम के आओ
बाहर,
खुले में।

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