Monday, April 28, 2014

सीढ़ियाँ

आज
फिर
गुज़रे
करीब से
बच्चे
वो दोनों।

एक
चढ़ता
ऊपर,
बाँधे
पीठ पर
भविष्य लदा
स्कूल बस्ता।

दूसरा
उतरता
संभवनाओं की
सीढ़ियाँ
लादे
रीढ़ पर
माज़ी भरा
मट्टी का बोरा।

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