आज फिर गुज़रे करीब से बच्चे वो दोनों।
एक चढ़ता ऊपर, बाँधे पीठ पर भविष्य लदा स्कूल बस्ता।
दूसरा उतरता संभवनाओं की सीढ़ियाँ लादे रीढ़ पर माज़ी भरा मट्टी का बोरा।
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