Wednesday, April 30, 2014

परछाईं

हाथ
की
परछाईं भी
छूई
न थी
अभी
तितली को,
उड़ गई!

दे गई
ईशारे में
सबूत
भय का,
थीं
और
कौन कौन सी
भावनाएँ
दबी
भरी
उसमें,
काश!
बता जाती|

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