हाथ की परछाईं भी छूई न थी अभी तितली को, उड़ गई!
दे गई ईशारे में सबूत भय का, थीं और कौन कौन सी भावनाएँ दबी भरी उसमें, काश! बता जाती|
No comments:
Post a Comment