देख रहीं थीं आँखें उनकी वो पतलून जो दी थी हमें तोहफ़े में उन्होंनें बीते बरस,
और हमें चुभ रहीं थीं उसी पर्दे में अपने वजूद की दो टाँगें जिन पर अभी तक हम खड़े न थे
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