Tuesday, April 29, 2014

तोहफ़ा

देख
रहीं थीं
आँखें
उनकी
वो
पतलून
जो दी थी
हमें
तोहफ़े में
उन्होंनें
बीते बरस,

और
हमें
चुभ
रहीं थीं
उसी पर्दे में
अपने
वजूद की
दो टाँगें
जिन पर
अभी तक
हम
खड़े
न थे

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