Wednesday, April 30, 2014

हवन

चलो
लगायें
ध्यान...

चलनें
को ही
समझें
समाधी,
कहनें
की ज़रूरत
को ही
मौन समझें |

देह का
निवाला ही
उपवास सही,
चाय के
प्याले को
प्राण समझें |

मानें
देह को
पूजा की
थाली,
जलायें
करुणा की
लौ
तड़प का
तेल जलायें |

उडनें दें
हर दिशा
समर्पण की
सुगंध,
दिनचर्या को
अनुष्ठान
जीवनयापन को
हवन समझें |

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