सूरज, जिस दिन सदियों लम्बी रात के पिछले पहर, वक्त के तेल को जला, बिन फूँक ख़ुद ही फड़फड़ा के बुझोगे, कौन सी हसीन सुबह लाओगे, कब लाओगे!
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