Saturday, August 19, 2017

अकेला

सरकाओ उन पेड़ों को ज़रा
कुछ बायें
नज़र तो आयें,

उतारो चाँद को
एक हाथ नीचे
और न शरमाये,

बिखेरो ज़रा
बादलों के बाल
लगें कुछ और नशीले,

पर्बतों से कहो
बढ़ा कदम
मेरे क़रीब आयें,

खड़ा हूँ
कब से
अकेला
अपने फ़्रेम में,
तक़दीर से कहो
भरे रंग
बहार लाये।

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