सरकाओ उन पेड़ों को ज़रा कुछ बायें नज़र तो आयें,
उतारो चाँद को एक हाथ नीचे और न शरमाये,
बिखेरो ज़रा बादलों के बाल लगें कुछ और नशीले,
पर्बतों से कहो बढ़ा कदम मेरे क़रीब आयें,
खड़ा हूँ कब से अकेला अपने फ़्रेम में, तक़दीर से कहो भरे रंग बहार लाये।
No comments:
Post a Comment