धोबी की तरह न यूँ सिल पर पटक मुझे,
धो बेशक मल मल कर जितना तू चाहे,
यूँ न कर तार तार मुझे!
यूँ ही सुन ले जो गीत सुनने की चाह है तेरी,
दर्द पहले से है सराबोर तबीयत में मेरी,
और न दे!
दिखा दिखा कर उठाई है ज़िंदगी दस्तरख़ान से मेरे,
कर बे आबरू चाहे जितना
मगर दाम तो दे,
है तू शाहों का शाह जानते हैं सब,
मैं भी तो हूँ मस्ताना,
दाद तो दे,
हुआ होगा तुझे इस सब से जाने क्या हासिल,
मेरा क्या क्या खोया,
हिसाब तो दे,
किस क़याम^ से निकला था किस क़यास^^ को,
इस अंजाम से मुख़ातिब हूँ मैं
किस हिसाब से?
^कल्पना ^^ठहराव
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