छत पर, बालकोनी में, सड़कों गलियों मैदानों, ढूँढ़ती है बारिश तुम्हें न जाने कहाँ कहाँ,
और तुम हो छिपे रजाई में ऊँघते यहाँ!!
चलो उठो आओ बाहर, ज़रा भीगो, सूँघो मिट्टी की महक, अन्दर से खिलो।
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