देखे न गए जो ख़्वाब हौंसलों से, क्षमायाचक पलकों नें झपक कर उड़ा दिए,
बैठे रहे, फिर भी, ताउम्र, वो सारे, आँखों की मुंडेर, बीनते इजाज़त के दाने।
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