Friday, July 25, 2014

दाने

देखे
न गए
जो
ख़्वाब
हौंसलों से,
क्षमायाचक
पलकों
नें
झपक कर
उड़ा दिए,

बैठे रहे,
फिर
भी,
ताउम्र,
वो सारे,
आँखों
की
मुंडेर,
बीनते
इजाज़त
के
दाने।

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