Thursday, July 24, 2014

रूह

बड़ा दिल करता है
कभी कभी
करूँ बंद
टीवी,
और आँखें भी,
कुछ न देखूँ।

बस सुनूँ
आधी रात के
सन्नाटे में,

रेडियो...

निकल जाने दूँ
जिस्म से रूह,
उड़ जाने दूँ उसे,
पकड़
रेडियो की तरंगें,
दूर देश,

वहाँ तक
जहाँ से
आती थीं वो।

बैठनें दूँ उसे
उसी आवाज़ के सामने,
देखते
उसे
एकटक
अपलक
घंटों...

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