अगर इसे कहते हैं कानफरेंस तो शेख जी ऐसी हमारे गाँव की चौपाल पर दिन में चार होती हैं,
बस मुनादी ही नहीं होती, बाकि रिवायतें ऐसी ही रौबदार होती हैं।
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