बारिश की बूंदें जब गिरते गिरते ज़मीन से टकरा टुकड़े हो ज़ोर से उछलती हैं,
यूँ लगता है अभी हसरत थी जाने की और आगे उनकी, जो बीच में ही टूटी है,
सम्भालती हैं फिर भी खुद को, नन्ही नदी बन जहाँ रास्ता मिले बह निकलती हैं।
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