Tuesday, July 29, 2014

हसरतें

बारिश
की
बूंदें
जब गिरते गिरते
ज़मीन से टकरा
टुकड़े हो
ज़ोर से उछलती हैं,

यूँ लगता है
अभी
हसरत थी
जाने की
और आगे
उनकी,
जो बीच में ही
टूटी है,

सम्भालती हैं
फिर भी
खुद को,
नन्ही नदी बन
जहाँ रास्ता मिले
बह निकलती हैं।

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