Saturday, February 22, 2014

पापा

पापा
कहाँ हो तुम
ढूँढता हूँ तुम्हें
हर अलमारी
कमरे
दरवाज़े
गली
कूचे
देश
दुनिया...

कहाँ हो तुम |

यहीं हो
या सितारा बन
छिपे हो
आसमां में
बादलों के पीछे
खेलते
आँख मिचोनी...

कहो न
कहाँ हो?

अब हो गया हूँ
बड़ा
समझ सकता हूँ
तुम जो कहते थे
मैं समझता न था |

कहना चाहता हूँ
वो
जो
तुम सुनना चाहते थे,
मिलो तो
फिर सुनूँ
मिलो तो
अब कहूँ |

कहता हूँ
लिखता हूँ
करता हूँ बातें
क्यों
जानता हूँ
तुम तक पहुँचता है
देखते हो
सुनते
कहीं से
चुपके से
मुझे
छिपकर |

आ जाओ
एक बार
फिर
सामनें
देखूँ
फिर
तुम्हें
मुझे देखते
उन्हीं आँखों से
बोलते
पुकारते
मेरा नाम...

पापा
कहाँ हो तुम...

कह दो
कहीं हो तुम
आसपास...

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