साँसों की तितलियाँ
Friday, February 14, 2014
उम्मीद
अभी तक हाथ में हैं
कल शब जो लबों से गिरे थे,
अंगार होते तो बात और थी
आशार ओ जिगर थे, उम्मीद से थे
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