Saturday, February 15, 2014

बाज़ार

गया था
सज धज
इत्र लगा
बाज़ार देखने,
कब चीज़ों से
बदल गया
राम जाने |

थे जो
रूपये पैसे
जेब ए नक्शीन
खरीदने
कुछ मनपसन्द,
उन्हीं से बिक गया
मैं कैसे जाने..

कौन लौटा
फिर घर
कैसे कहूँ,
मैं तो हूँ
पीछे
बाम ए नुमाइश
दहलीज़ ए घर पर कौन
कौन जाने

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