कलम के मुहँ से निकली है स्याही विचारों का कहीं स्राव हुआ है, लगी है कोई चोट ज़रूर या पुराना ज़ख्म कोई हरा हुआ है, कहने दो बह जाने दो लिखने दो आराम मिले मुहँ ढककर फिर सोने दो महफ़िल का सामान मिले
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