Saturday, February 8, 2014

अंदर

रहने दूँ
तुम्हें
पत्थर में,
सोचता हूँ
बाहर न निकालूँ,
लगे न चोट,
हो न दर्द
चलाऊँ जब औज़ार
तुम्हें तराशुं

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