जिससे डरते हो
उसे ही
सलाम
किसी और का
कुछ और
कुछ ज़्यादा
देते हो|
लगाते हो
लत
सजदे की
इस कदर,
उसी के
जूते को
हर दर
हर मुकाम
पाते हो|
करते हो
जिससे प्यार,
नहीं डरते जिससे
सिरे से
उसे ही
दरकिनार करते हो|
चाहता है
जो तुम्हें
उसे देखते भी नहीं,
टेढ़ी है
जो नजर
उसी से
चार करते हो!
सुनते हो
उसी की
जो करता है
स्वाँग
न सुनने का,
तरसता है
सुनने को
जो
तुम्हारी
हर आवाज़
कहाँ
कान धरते हो!
करे
तुमसे
कैसा सलूक,
बताकर
आईनें को
खुद ही
खराब करते हो
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