Sunday, March 30, 2014

सावन

खड़ा है
एक तनें पर
पतझड़ के
अकेलेपन में
वो,
उठाए
हजारों हाथों से
अपना
आसमान,
करते
शुक्रिया
पिछले सावन का,
माँगता
झड़े पत्तों
की मुक्ति,
करता
प्रार्थना
पानें की
अगली
रुत के
फल,
और
उनको खानें
सलामत
ज़िन्दा
दुनिया ।

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