खड़ा है एक तनें पर पतझड़ के अकेलेपन में वो, उठाए हजारों हाथों से अपना आसमान, करते शुक्रिया पिछले सावन का, माँगता झड़े पत्तों की मुक्ति, करता प्रार्थना पानें की अगली रुत के फल, और उनको खानें सलामत ज़िन्दा दुनिया ।
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