मिली थीं जैसे बरसों पहले डायनासोरों की हड्डियाँ, वैसे ही जब बाद सदियाँ मिलें इन्सां की भी तीलियाँ, उगल देंगी राज़ बहुत से, फ़ितरत मगर कहेंगी कैसे!
रिस चुकी हो जितनी गहरी, हया भी शायद बची तो होगी।
No comments:
Post a Comment