Sunday, March 16, 2014

तीलियाँ

मिली थीं
जैसे
बरसों पहले
डायनासोरों
की हड्डियाँ,
वैसे
ही
जब
बाद सदियाँ
मिलें
इन्सां की
भी
तीलियाँ,
उगल देंगी
राज़
बहुत से,
फ़ितरत मगर
कहेंगी
कैसे!

रिस चुकी हो
जितनी गहरी,
हया भी
शायद
बची
तो होगी।

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