किया था क्या कसूर उस दाने आखिरी नें, आपनें जो छोड़ दिया।
टूट के आया था जिस शाख़ से करके ज़िद बुझानें आपके उदर की आग, क्या भेजे घर पैग़ाम की मायूस हुआ?
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