आती नहीं है याद
मुझे
अब
अपनें गाँव की।
काले पानी
की नालियाँ
कराती हैं याद
गाँव के
उसी तालाब की,
फ़सलों को
मुट्ठी भर भर
बाँटते थे
जो दवाइयाँ,
मिलती हैं
झोली भर
वहीँ की तरह
यहाँ भी।
गाँव की
पगडन्डियों सी हैं
टूटी सडकें
यहाँ,
पानी बिजली
की किल्लत
वहाँ भी है
यहाँ भी।
अस्पताल
वहाँ
थे न के बराबर,
यहाँ हो कर भी
नहीं सलामत,
शमशान
वहाँ भी है
यहाँ भी।
आती नहीं है
माँ
मुझे याद
अब
अपनें गाँव की।
No comments:
Post a Comment