Friday, March 28, 2014

कूआँ

इन्सां
तेरे भीतर
का कूआँ
आवाजों से
है लबरेज़*           (* लबालब)
किस कदर

गूँजनें
को
कुछ भी
जगह नहीं,
डूबनें को
अथाह**              (**बेहिसाब)
समन्दर !

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