Friday, March 28, 2014

जन्मदिन

छेड़ती है
रात
हर रात
मुझे
"देख
कुछ भी नहीं
बचा”
कहकर,

फिर
सुबह सुबह
हर सुबह,
मेरे जन्मदिन
की तरह,
खींच कर
अँधेरे की
चादर
दफ़्फ़तन*                  (*अचानक)
"लो
सब कुछ है
बचा”
चूमकर
कहती है!

No comments:

Post a Comment