छेड़ती है रात हर रात मुझे "देख कुछ भी नहीं बचा” कहकर,
फिर सुबह सुबह हर सुबह, मेरे जन्मदिन की तरह, खींच कर अँधेरे की चादर दफ़्फ़तन* (*अचानक) "लो सब कुछ है बचा” चूमकर कहती है!
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