ये कौन सा
है पंछी
किस
नस्ल का है?
ढूँढ़ता
बनाता
सजाता है
पिंजरे,
किस जिबाल* का है! (*पर्वत, पहाड़)
आकाश से है
नफ़रत
ज़मीनों से प्यार,
दरो दीवारों
में हो कैद
झरोखों से
झाँकता है|
सावन की
नहीं पहचान इसे
हर मौसम
पतझड़ कहता है
हरे पत्ते तोड़
सूखे पत्ते
जलाता है!
दरख्तों से
है जंग
इसकी
बाग
उजाड़ता है
धुआँ भरता है
दम में,
दम को
उड़ाता है!
फूलों
फलों
परागों
से है चिढ़,
आँधियों
ग़ुबारों
से लगाव,
जन्नत सी
सरज़मीं को
दोज़ख़
बनाता है!
चुगता नहीं है
दानें
बस मिट्टी
खाता है,
आता नहीं है
गाना,
रोता
चीखता
चिल्लाता है!
ये कौन सा है
पंछी
किस नस्ल का है!
ढूँढ़ता
बनाता
सजाता है
पिंजरे,
किस जिबाल का है!
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