सालों से शवों को शमशान मुफ़्त पहुँचा रहे सर्वजीत,
कफ़न में जेबों की क्या दरकार समझा रहे सर्वजीत।
मीलों चल के भी घर से पहले लड़खड़ा गये जो जो बशर, सारथि बन घर आखिरी पहुँचा रहे सर्वजीत।
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