कवितायेँ
कितनी
सुंदर
दिखती हैं।
हों
किसी भी
शै में,
हसीन
लगती हैं।
कोई
आए,
देखे,
पहचाने,
खींचे
बाहर,
नहीं कोई
हसरत,
पढ़ पढ़
के
खुद को,
होती हैं
सराबोर,
ख़ुशी के
आँसुओं से
हवा के
सफ़े
भिगोती हैं।
सीली
हवाओं में
कवितायें
कितनी
सुन्दर
दिखती हैं!
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